इस सप्ताह अमरीका (America) ने रूस (Russia) की एक सरकारी प्रयोगशाला को मंजूरी दी है। लेकिन अब अमरीका में इसे लेकर विवाद बढ़ रहा है। अमरीकी विशेषज्ञों (American Cyber Security Experts) का दावा है कि यह वही लैब है जिसने संभवत: दुनिया का सबसे घातक हैकिंग टूल (world's deadliest hacking tool) बनाया है। अमरीका के इन तकनीकी विशेषज्ञों का कहना है कि यह हैकिंग टूल जीवन रक्षक औद्योगिक नियंत्रण के लिए बनाई गईं सुरक्षा प्रणालियों को (industrial control safety systems) बाधित करने के लिए डिज़ाइन किया गया एक मालवेयर (कम्प्यूटर वायरस) है। विश्लेषकों ने यह आशंका भी जताई है कि जिस लैब को पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन ने मंजूरी दी है वह रूसी संघ के राज्य अनुसंधान केंद्र के एक छद्म पदनाम से संचालित है। लेकिन यह पहली बार है जब अमरीका ने अपनी औद्योगिक नियंत्रण प्रणालियों पर साइबर हमले करने वाले रूसी लैब से प्रतिबंध हटाया है।
बेहद सख्त हैं अमरीका में प्रतिबंध कानून
गौरतलब है कि अमरीकी प्रतिबंध कानून बहुत सख्त हैं। यह पूरे अमरीका में विवादित संस्थान की किसी भी संपत्ति को फ्रीज कर देता है। इन्हीं प्रतिबंधों के तहत अमरीकी प्रशासन ने रूस की सैन्य जासूसी संस्था जीआरयू ( Russian military spy agency the GRU) के हैकर्स के मद्देनजर इस रूसी प्रयोगशाला पर प्रतिबंध लगा दिया था। जिसके बाद पूरे अमरीका में लैब या इसके कर्मचारियों के साथ किसी भी तरह के लेनदेन पर रोक लग गई। ट्रेजरी विभाग ने कहा कि ट्राइटन मालवेयर (the Triton malware, also known as Trisis and HatMan) का उपयोग अमरीका, यूरोप और अन्य सहयोगी देशों को परेशान कर रहा है जो रूसी सरकार की दुर्भावनापूर्ण और खतरनाक साइबर-सक्षम गतिविधियों का प्रमाण हैं। अमरीकी कोष सचिव स्टीवन मेनुचिन ने कहा कि रूसी सरकार अमरीका और उसके सहयोगी देशों को लक्षित कर पहले से ज्यादा खतरनाक साइबर गतिविधियों में संलग्न है। लेकिन हम किसी भी बाहरी शक्ति को अमरीका के लिए खतरा नहीं बनने देंगे।
'हैटमैन' मालवेयर से सहमा अमरीका
मॉस्को में केमिस्ट्री-सेंट्रल साइंटिफिक रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ केमिस्ट्री एंड मैकेनिक्स (विवादित रूसी प्रयोगशाला) ने 'ट्राइटन मालवेयर' नाम का कम्प्यूटर वायरस बनाया है जिसे 'ट्रिसिस' और 'हैटमैन' भी कहा जाता है। इसी वायरस का इस्तेमाल उन्होंने 2017 में सऊदी पेट्रोकेमिकल फैसिलिटी पर एक साइबर हमले के दौरान किया था, जिसके परिणामस्वरूप सऊदी पेट्रोकेमिकल को लाखों डॉलर का उत्पादन ठप हो गया था। सऊदी विशेषज्ञों ने इस हमले में दर्जनों लोगों के मारे जाने की आशंका जताई थी। लेकिन कोडिंग में हुई एक छोटी सी चूक ने मालवेयर को नाकाम कर दिया और एक संभावित तबाही टल गई। माना जाता है कि इस लैब का संबंध रूस की सैन्य जासूसी एजेंसी 'जीआरयू' (GRU) से है।
अमरीकी कंपनियों में भी लगाई घात
अमरीकी विशेषज्ञ इसलिए भी चिंतित हैं कि हैकर्स ने सऊदी पेट्रोकेमिकल के अलावा अमरीकी एनर्जी फैसिलिटी के साथ यूरोप, फारस की खाड़ी में तेल और गैस कंपनियों की जासूसी कर उनके सिस्टम को स्कैन किया है। सऊदी प्लांट की जांच करने वाली साइबर सिक्योरिटी फर्म मैंडिएंट के वरिष्ठ निदेशक जॉन हॉल्टक्विस्ट ने बताया कि सऊदी मालवेयर हमला भी किस्मत से सामने आ गया था। उन्होंने कहा कि हैकर्स ने सिस्टम को ट्रिप कर दिया, जिससे प्लांट बंद हो गया। इसका लाभ उठाकर हैकर्स ने प्लांट के सिस्टम में सेंध लगाने की कोशिश की। 2018 में उन्होंने इस हमले को रूसी लैब का काम बताया जिसके लिए हाल ही अमरीकी प्रशासन ने मंजूरी दी है। हालांकि यह अब तक स्पष्ट नहीं है कि रूस ने सऊदी संयंत्र को क्यों निशाना बनाया था?
पहले भी कर चुके साइबर हमला
इस सप्ताह, अमरीका ने इतिहास में सबसे महंगी साइबर घुसपैठ 'नोटपेटया' साइबरअटैक से जुड़े रूस की सैन्य जासूसी एजेंसी 'जीआरयू' के हैकर्स के खिलाफ आरोपों को खारिज कर दिया। इस साइबर हमले ने दुनिया भर के संस्थानों को नुकसान पहुंचाया था। रूसी हैकर्स ने अमरीकी ऊर्जा ग्रिड को भी निशाना बनाया था, जो संभावित रूप से भविष्य में साइबर हमलों के आक्रामक संचालन को सक्षम बनाने, रासायनिक हथियारों के निषेध और विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी के सिस्टम को हैक करने की कवायद का हिस्सा था। चार साल पहले, जीआरयू ने अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव को बाधित करते हुए डेमोक्रेटिक ईमेल को हैक और लीक कर दिया था। 2016 में भी रूसी हैकर्स ने अमरीका के राज्य और स्थानीय चुनाव प्रणालियों में सेंध लगाई थी। उन्होंने कई राज्यों के प्रशासनिक सिस्टम को हैक कर लिया था। हालांकि उन्होंने वोटों में बदलाव नहीं किया और न ही किसी प्रकार की जानकारी में हेरफेर किया।
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