हवाई यात्रा में बिना बफरिंग और रुकावट के इंटरनेट का उपयोग अक्सर संभव नहीं होता। लेकिन तकनीक के कारण अब यह भी संभव है। जल्द ही हम जमीन से 40 हजार फीट की ऊंचाई पर भी बिना रुकावट के इंटरनेट का आनंद ले सकेंगे। यह संभव हो सकेगा वाई-फाई तकनीक में बदलाव करने से। अब हजारों फीट ऊंचाई पर एयरप्लेन वाई-फाई बिना रुकावट इंटरनेट की सुविधा देगा। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में एयरलाइंस कंपनियों पर अपने ग्राहकों को बेहतर एक्सक्लूसिव सेवाएं देने का जबरदस्त दबाव है। लेकिन 'जमीनी इंटरनेट सुविधा की गुणवत्ता' में सुधार इस दबाव को काफी हद तक कम कर अरबों डॉलर मेंटिनेंस खर्च बचा सकता है।
दरअसल, 30 एयरलाइंस कंपनियों के एक गैर-लाभकारी समूह 'सीमलेस एयर एलायंस' का दावा है कि उनकी नई तकनीक खुले इंटरफेस और सिस्टम के साथ जहाज के अंदर इंटरनेट कनेक्टिविटी सिस्टम को मॉड्यूलर बनाएगी, जिसे आसानी से swap किया जा सकता है। इस समूह में एयरबस और डेल्टा एयरलाइंस शामिल हैं। कंपनी की महत्त्वकांक्षी योजनाओं को पूरा करने का काम समूह से जुड़ी सैटेलाइट कंपनियां, तकनीकी उपकरण निर्माता कंपनियां और मोबाइल-नेटवर्क प्रदाता कंपनियां शामिल हैं। ये सभी साथ मिलकर सेलुलर और वाई-फाई उद्योगों से आउटसोर्स कर मिले प्रोटोकॉल का उपयोग करके एक वैश्विक मानक प्रस्तुत करना चाहते हैं। इस समूह के सीईओ जैक मंडाला का कहना है कि वर्तमान में एयरलाइंस कंपनियां अपने चुने हुए नेटवर्क प्रदाता के उपकरण का उपयोग कर रही हैं लेकिन समूह की यह योजना इस पूरे खेल को ही बदल कर रख देगी।
यात्रियों के लिए एयरपोर्ट का अनुभव बिल्कुल अलग होगा। मोबाइल कनेक्शन एक सिस्टम से दूसरे सिस्टम पर, टर्मिनल ब्रिज से जेट ब्रिज पर और आपकी सीट पर आने-जाने के लिए लॉग-इन करने या भुगतान किए बिना माइग्रेट हो जाएगा। अब आप उन एयरलाइन फिल्मों तक ही सीमित नहीं रहेंगे बल्कि अपनी पसंद के सीरियल, फिल्में, ऑनलाइन एपिसोड और वीडियो गेम भी खेल सकते हैं। मंडाला का कहना है कि ऑनबोर्ड इंटरनेट सेवा एयरलाइंस के ब्रांड के लिए एक बड़ा घाटा है। यात्रियों की शिकायत होती है कि वे सोशल मीडिया और इन्फोनेट से दूर हो जाते हैं। लेकिन इसके लिए वे इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी की बजाय एयरलाइंस को दोष देते हैं। मंडाला का दावा है कि नई इंटरनेट प्रदाता कंपनियां इन एकीकृत मानकों से आकर्षित होकर बाजार में उतरेंगी जिससे एक नए उद्योग की शुरुआत होगी। प्रतिस्पर्धा गुणवत्ता को बढ़ाएगी। हालांकि इस सेवा की इन-फ्लाइट कनेक्टिविटी की उच्च लागत एक बड़ी चुनौती है।
समूह का कहना है कि इस
नए प्रोटोकॉल से एयरलाइनों को अरबों डॉलर भी बचेंगे। क्योंकि वे तेजी से न केवल नई तकनीकों को अपना सकेंगे बल्कि अपनी जरुरत और यूजर फे्रंडली वाई-फाई कनेक्टिविटी को अधिक कुशलता से प्रबंधित करने में सक्षम होंगे। इसके लिए समूह लो-अर्थ-ऑर्बिट सैटेलाइट नेटवर्क Low Earth Orbit Satelite Network की एक नई पीढ़ी की सेवाएं लेगा। इनमें एलोन मस्क की स्टारलिंक कंपनी भी शामिल हो सकती है। बीते दस सालों के विश्लेषण के आधार पर समूह का अनुमान है कि इन क्षेत्रों में 5 फीसदी का सुधार भी 2028 तक इंटरनेट से जुड़े विमानों के बेड़े में 10 हजार से बढ़कर 25,500 पैसेंजर होने का अनुमान है। इतना ही नहीं इससे एयरलाइंस कंपनियों की इन-फ्लाइट सेवा बाजार में 11.4 बिलियन डॉलर (1140 करोड़ रुपए) की वृद्धि होने की उम्मीद है। 2019 में किए इस अध्ययन में यह भी सामने आया कि तीन अन्य क्षेत्रों में 5फीसदी सुधार के साथ ग्राहक सुविधा को दोगुना करने पर यह लाभ लगभग 3700 करोड़ रुपए होने की उम्मीद है। जो कंपनियां इंटरनेट सुविधा देती हैं वहां खराब सेवा के चलते ग्राहकों की संख्या 10 फीसदी तक घट जाती है। ज्यादातर यात्री विमान के सर्वर से वायरलेस स्ट्रीमिंग एंटरटेनमेंट से जुड़े होते हैं।
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