26 नवंबर 2019

व्यापम घोटाले में 1 को 10 साल, 30 को 7 साल की सजा

मध्यप्रदेश में व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) (VYAPAM) द्वारा वर्ष 2013 में आयोजित आरक्षक भर्ती परीक्षा में हुई गड़बड़ी के मामले में सीबीआई (CBI) की विशेष अदालत (Special Court) के न्यायाधीश एस.बी. साहू ने 31 दोषियों के लिए सजा का ऐलान किया। मुख्य दोषी को 10 साल कैद और 30 दोषियों को सात-सात साल कैद की सजा सुनाई गई है। सीबीआई के विशेष लोक अभियोजक सतीश दिनकर ने बताया कि न्यायाधीश साहू ने 21 नवंबर को 31 आरोपियों को दोषी ठहराया था। मुख्य आरोपी प्रदीप त्यागी को 10 साल जेल और 10 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई गई है, जबकि अन्य 30 दोषियों को सात-सात साल जेल और एक से तीन हजार रुपये तक जुर्माने की सजा सुनाई गई है। सूत्रों के अनुसार, जिन आरोपियों को सजा सुनाई गई है, उनमें 12 परीक्षार्थी, 12 फर्जी परीक्षार्थी और सात दलाल हैं।

आरक्षक भर्ती मामले की प्राथमिकी इंदौर के राजेंद्र नगर थाने में दर्ज की गई थी। मामले की जांच एसटीएफ कर रही थी। इस मामले से जुड़े कई लोगों की रहस्यमय ढंग से मौत हो जाने के बाद सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर यह मामला सीबीआई को सौंपा गया। सीबीआई ने इस परीक्षा में धांधली के मामले में 31 लोगों को आरोपी बनाया था। इस मामले में वर्ष 2014 से गवाही शुरू हुई, जो पांच साल तक चली। व्यापम घोटाले का खुलासा 7 जुलाई, 2013 को पीएमटी परीक्षा के दौरान तब हुआ, जब एक गिरोह इंदौर की अपराध शाखा की गिरफ्त में आया। यह गिरोह पीएमटी परीक्षा में फर्जी विद्यार्थियों को बैठाने का काम करता था। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस मामले की जांच अगस्त, 2013 में एसटीएफ को सौंपा था।

बाद में उच्च न्यायालय ने मामले का संज्ञान लिया और उसने उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति चंद्रेश भूषण की अध्यक्षता में अप्रैल, 2014 में एसआईटी गठित की, जिसकी देखरेख में एसटीएफ जांच करता रहा। 9 जुलाई, 2015 को मामला सीबीआई को सौंपने का फैसला हुआ और 15 जुलाई से सीबीआई ने जांच शुरू की। इस चर्चित मामले में लगभग ढाई हजार लोगों को आरोपी बनाया गया, इनमें से कुल 2100 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है।

शिवराज सरकार के एक मंत्री तक को जेल जाना पड़ा था। इससे जुड़े 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। रहस्यमय ढंग से एक के बाद एक मौत होने का राज जानने के लिए एक निजी समाचार चैनल ने अपने खोजी पत्रकारअक्षय सिंह को दिल्ली से भेजा था। जब अक्षय सिंह की भी रहस्यमय परिस्थिति में मौत हो गई, तब सुप्रीम कोर्ट ने स्वत:संज्ञान लेते हुए यह मामला सीबीआई को सौंपने का निर्देश दिया था।



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