21 अक्तूबर 2019

पत्थरों से कागज बनाकर लाखों पेड़ों को बचा रहे दो युवा

जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदूषण से लडऩे में पेड़-पौधों की महती भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। ग्लोबल फॉरेस्ट रिसोर्स असेसमेंट के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया भर में प्रतिदिन 80 हजार से 1 लाख 60 हजार पेड़ काटे जाते हैं। इनमें से ज्यादातर पेड़ों का उपयोग कागज उद्योग में ही किया जाता है। वनों की निरंतर कटाई का दुष्प्रभाव वैश्विक जलवायु पैटर्न में बदलाव के रूप में हमारे सामने है।

लेकिन क्या पेड़ों के बिना कागज बनाना संभव है?
जी हां, पेड़ों को नुकसान पहुंचाए बिना भी कामगज बनाया जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया के दो उद्यमियों केविन गार्सिया और जॉन त्से की तकनीक कुछ ऐसा ही कर रही है। उन्होंने एक साल के अथक शोध के बाद ऐसे विकल्प तैयार किए हैं जो कागज की जरुरत को पूरा तो करते हैं लेकिन बिना पेड़ों को नुकसान पहुंचाए। अपने शोध के पूरा होने पर उन्होंने जुलाई 2017 में कास्र्ट स्टोन पेपर लॉन्च किया। उनकी स्टार्टअप कंपनी लकड़ी, पानी या कठोर रसायनों का उपयोग किए बिना कागज का उत्पादन करती है। वे निर्माण स्थलों और अन्य औद्योगिक इमारतों में बेकार पड़े पत्थरों की छीलन (स्टोन वेस्ट) का उपयोग कागज बनाने में करते हैं।


40 फीसदी पेड़ कागज उद्योग में
गार्सिया का कहना है कि पारंपरिक रूप से कागज बनाने की पूरी प्रक्रिया में पेड़ों को काटना, रसायनों और ब्लीच को मिलाकर लुगदी बनाना, लाखों गैलन पानी का उपयोग कर कागज बनाया जाता है। यह गहन श्रम है और उच्च कार्बन उत्सर्जन में भी सहायक है। वल्र्ड वाइल्ड लाइफ फंड के अनुसार लुगदी और कागज उद्योग विश्व स्तर पर सभी औद्योगिक लकड़ी का 40 फीसदी हिस्सा उपयोग करता है। उनके स्टार्टअप का उद्देश्य कागज बनाने के सामान में कटौती कर वनों की कटाई की दर को कम करना है। 2019 में ही उनके बनाए कागज से ऑस्टे्रलिया में 540 बड़े लकड़ी के पेड़ों को बचाने में मदद मिली। इतना ही नहीं इससे 83,100 लीटर पानी भी बचाया गया। इन पेड़ों से पर्यावरण में सालाना 25,500 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने में मदद भी मिलेगी।


ऐसे बनाते हैं स्टोन पेपर
उनकी कंपनी चूना पत्थर एकत्र कर उसे केमिकली साफ करते हैं। इसके बाद इसे महीन पाउडर के रूप में पीसते हैं। इस स्टोन डस्ट पाउडर को एचडीपीई (उच्च-घनत्व पॉलीइथाइलीन) गाढ़े तरल के साथ मिलाया जाता है जो कि खाद या फोटोडिग्रेडेबल है। यानि यह सूर्य के प्रकाश आने पर धीरे-धीरे क्षीण होकर कैल्शियम कार्बोनेट रह जाता है। गार्सिया का कहना है कि इस मिश्रण में 90 फीसदी कैल्शियम कार्बोनेट होता है और 10 फीसदी गोंद जैसा रेजिन जो इस पाउडर को बिखरने नहीं देता। इस पेस्ट जैसे मिश्रण को फिर मशीन पर छोटे-छोटे पैलेट्स में बदल जाता है। इसे गरम करने के बाद बड़े रोलर्स के माध्यम से कागज की पतली शीट में बदल दिया जाता है। यह पेपर नोटबुक के कागज जितना ही पतला और गत्ते जितना मोटा भी बनाया जा सकता है। पेड़ की लुगदी से कागज बनाने की प्रक्रिया की तुलना में इस प्रक्रिया से कागज बनाने पर कार्बन उत्सर्जन 67 फीसदी तक कम होता है। ऑस्ट्रेलिया, अमरीका ब्रिटेन और में कंपनी के अभी ७० से ज्यादा फर्म इस कागज का उपयोग कर रही हैं।



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