यह साल का ऐसा वक्त है, जब बच्चों के साथ-साथ उनके पेरेंट्स भी परीक्षा का दबाव महसूस करने लगते हैं। कॉम्पिटिशन की यह भावना कुछ हद तक अच्छी हो सकती है लेकिन हद पार होने पर यह पेरेंट्स और उनके बच्चों के लिए तनाव का कारण बन सकती है। मनोविशेषज्ञों का मानना है कि पेरेंट्स जाने-अनजाने बच्चों पर अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव बनाते हैं, जिसकी वजह से वे तनाव का शिकार हो जाते हैं। अब समय जागरूक होने और यह जानने का है कि आप बच्चों पर दबाव डाले मदद कैसे कर सकती हैं।
पेरेंट्स एग्जाम में बच्चे की मदद कैसे करें?
परीक्षा में अपने बच्चे की सहायक बनें। परीक्षा का तनाव बच्चे को महसूस न हों, इसके लिए आपको कुछ कदम उठाने होंगे। बच्चे को टाइमटेबल बनाने और उसी के अनुसार पढ़ाई करने में मदद करें, ताकि उसके पास रिवीजन के लिए पर्याप्त समय बचे। कोई कॉन्सेप्ट बच्चे को स्पष्ट न हो तो उसे समझाने में सहायता करें। इससे न सिर्फ उन्हें जल्दी लिखने का अभ्यास होगा, बल्कि उत्तर को सही तरह से लिखने का भी। तैयारी के दौरान बच्चे को सेहतमंद रखने के लिए पौष्टिक भोजन देना भी बहुत जरूरी है। बच्चे की पूरी नींद और आराम का ध्यान रखें। उसे भावनात्मक सहारा दें।
कैसा पता करें कि बच्चा एग्जाम स्ट्रेस में है?
पेरेंट के तौर पर आप ध्यान दें कि डर-चिंता और तनाव में बच्चे की प्रतिक्रिया कैसी होती है। आमतौर पर बच्चे इस बात को लेकर परेशान होते हैं कि उनकी तैयारी पूरी नहीं है। चिंता के कारण कुछ बच्चे सो नहीं पाते या कुछ बहुत ज्यादा सोने लगते हैं। एग्जाम के ठीक पहले कुछ बच्चे पेट में गड़बड़ महसूस करते हैं या रिजल्ट को लेकर निराश होते देखे जा सकते हैं। अत्यधिक तनाव होने पर कुछ बच्चे खुद को नुकसान पहुंचाने की भी कोशिश करते हैं।
क्या बच्चे को रात में पढऩे की अनुमति देना सही है?
बच्चे एक-दूसरे से अलग हैं और उनकी पढऩे की आदतें भीं। कुछ रात में जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठकर पढऩा पसंद करते हैं तो कुछ रात में देर तक पढऩा और सुबह सोना पसंद करते हैं। बच्चा जैसा चाहे, वैसा करने दें। यह भी याद रखें कि किशोरावस्था में बच्चों में ज्यादा देर तक सोने की प्रवृत्ति होती है। अगर उनकी नींद खराब होगी तो वे दिन में कुशलता के साथ काम नहीं कर पाएंगे।
किन चीजों की चिंता करने की जरूरत नहीं है?
हाई स्कूल में आने के बाद कई बच्चे पढ़ाई के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझने लगते हैं। ऐसे में उन्हें नियंत्रित करने की बजाय अपने हिसाब से पढ़ाई करने की छूट दें। जरूरत से ज्यादा निगरानी और निर्देश देना उन्हें सीखने में मदद नहीं करेगा। हाई स्कूल के बच्चों को साथ बैठकर पढ़ाने की बजाय उन्हें कहें कि कोई टॉपिक समझ न आने पर वे आपके पास मदद लेने आ सकते हैं और उन्हें इम्तिहान की टेंशन करने की जरूरत नहीं है। बच्चे को यह बताएं कि माक्र्स से ज्यादा सीखना महत्वपूर्ण है। इससे उन पर दबाव नहीं बनेगा और वे निडर होकर एग्जाम का सामना करेंगे।
परीक्षा के दौरान पेरेंट्स खुद को तनावमुक्त कैसे रखें?
सबसे पहले यह समझें कि हर बच्चा अपने आप में खास होता है और उसकी क्षमता व टैलेंट दूसरे बच्चों से अलग होता है। यह भी स्वीकार करें कि रैंक लाए बिना भी जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है। अंकों के बल पर बच्चे का मूल्यांकन करना सही नहीं है। अकादमिक परिणाम जीवन का एक हिस्साभर है, पूरा जीवन नहीं है। बच्चे की क्षमताओं को समझना और उसी के अनुसार संभावनाओं की तलाश करना समझदारी होगी।
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